महर्षि दयानंद सरस्वती – वैदिक पुनर्जागरण के अग्रदूत
महर्षि दयानंद सरस्वती: वैदिक पुनर्जागरण के अग्रदूत
जानिए उनके जीवन, शिक्षाओं और समाज सुधार में योगदान के बारे में।
जन्म और प्रारंभिक जीवन- जन्म: 12 फरवरी 1824, टंकारा, गुजरात
- मूल नाम: मूलशंकर
- बाल्यकाल से ही वेदों और धर्म में रुचि थी।
सन्यास की ओर यात्रा- 14 वर्ष की आयु में मृत्यु का भय देखकर मोक्ष की तलाश शुरू की।
- कई गुरुओं से ज्ञान प्राप्त किया और सत्य की खोज में निकल पड़े।
आर्य समाज की स्थापना
- 10 अप्रैल 1875 को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की।
- उद्देश्य: वेदों के अनुसार समाज को सुधारना और अंधविश्वास को मिटाना।
समाज सुधार में योगदान
- मूर्तिपूजा और अंधविश्वास का विरोध
- नारी शिक्षा और समानता का समर्थन
- जातिवाद के खिलाफ लड़ाई
- स्वराज और राष्ट्रवाद की भावना
‘सत्यार्थ प्रकाश’ का प्रकाशन
1875 में सत्यार्थ प्रकाश लिखा, जिसमें धर्म, समाज सुधार और राष्ट्रवाद पर विचार व्यक्त किए।
उनकी हत्या और बलिदान
- 30 अक्टूबर 1883 को षड्यंत्र के तहत जहर दे दिया गया।
- अंतिम शब्द: "हे ईश्वर, मुझे सच्चे मार्ग पर चलाना"
उनकी स्थायी विरासत
- डीएवी स्कूल और कॉलेज उनकी शिक्षा नीति से प्रेरित।
- आर्य समाज आज भी उनके सिद्धांतों का प्रचार कर रहा है।
- स्वतंत्रता सेनानियों पर गहरा प्रभाव
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